सफलता का मूल मंत्र | ज़िंदगी को बेहतर कैसे बनाएँ?


क्या सफलता सिर्फ पैसा और पदवी तक सीमित है? असली सफलता तो वह है जहाँ आपकी क्रिएटिविटी ज़िंदा हो, रिश्ते मायने रखते हों, और जीने का एक उद्देश्य हो। शंकराचार्य के अनुसार यह जीवन एक सिमुलेशन है, पर हम इसे सार्थक कैसे बनाएँ?  
सफलता का मूल मंत्र | ज़िंदगी को बेहतर कैसे बनाएँ?

शंकराचार्य के हिसाब से यह जो दुनिया हमारी है, यह भी एक तरह का simulation है। अंतर सिर्फ इतना है कि हम characters हैं और उस video game का remote किसी और के हाथ में है। कोई हमारे साथ खेल रहा है और हमें लगता है कि मैं CA बन गया। वहां से button कैसे चलाया, CA बन गए और आप उछल रहे हैं, यह कर रहे हैं, वो कर रहे हैं। अचानक उससे गलती हुई और मामला खत्म। जैसे video game में आपसे गलती हुई तो level 15 वाला खत्म हो जाता है। इतनी क्षणभंगुर किस्म की जिंदगी, इतनी बुलबुले जैसी जिंदगी—उस जिंदगी में इन छोटी-छोटी बातों में इतना लीन होकर डूबे रहना, मेरे ख्याल से इससे खराब जिंदगी कोई नहीं हो सकती।

इसलिए, जो करना है वह यह कि जिंदगी में रहते हुए अपनी जिंदगी को बेहतर कैसे बनाना है। Financial चीजों से समझौता करते हुए अपनी बाकी जिंदगी को बेहतर कैसे बनाना है? और जिंदगी बेहतर है या नहीं, इसके चार-पांच parameters हैं। सबसे गहरा parameter यह है कि आपके पास जीने का कोई उद्देश्य है या नहीं। और है, तो कितना बड़ा उद्देश्य है? कुछ लोगों के पास होता है कि मुझे सबको हरा देना है, first आना है, एक crore कमाना है। ठीक है, उद्देश्य है, पर यह उद्देश्य बहुत दूर तक मदद नहीं करेगा। इससे बेहतर यह होता है कि एक समय के बाद आप अपनी creative insight को आगे बढ़ाएं।

मैं ऐसे कई CA को जानता हूं जो CA हैं, पर उनको लगा कि उनकी जिंदगी इतनी सीमित नहीं है, उन्हें कुछ और करना चाहिए। तो उनमें से एक शेखर कपूर बन गया। उसने 'Mr. India', 'Bandit Queen' और 'Elizabeth' जैसी शानदार फिल्में बनाईं। वह chartered accountant था, पर एक दिन उसे समझ में आया कि मेरे CA वाले काम से जिंदगी कमाल की नहीं हो पाएगी। ठीक है, मैं कुछ कमा लूंगा, लेकिन वैसे नहीं हो पाएगी जैसे मैं चाहता हूं।

बहुत सारे CA हैं जिन्होंने अलग राह पकड़ी। किसी को लगा कि उसे देश को सुधारना चाहिए, वह सुरेश प्रभु बन गया और rail minister बना। एक और CA को लगा कि उसे एक नई राजनीतिक party में ईमानदारी का संदेश लेकर जाना चाहिए, वह Ra Chaddha बन गया। ये सारे CA थे—कोई राजनीति में आ गया, कोई enterprise में चला गया।

एक CA विदेश में पढ़ाई कर आया, उसे लगा कि media की दुनिया को regulate करना और बेहतर बनाना चाहिए। उसने 'India Today' नामक magazine शुरू की और धीरे-धीरे 'Aaj Tak' का मालिक बन गया—अरुण पुरी। एक और CA, सिद्धांत चतुर्वेदी, फिल्मों में आकर सुंदर actor बन गया। वह 'Gully Boy' में नजर आया और शानदार acting की।

एक CA को लगा कि सिर्फ accounting नहीं करनी, बल्कि कुछ बड़ा काम करना है—startup करना है। वह मोतीलाल ओसवाल बन गया, जिसने इतना बड़ा साम्राज्य खड़ा कर दिया। कुमार मंगलम बिड़ला भी एक CA हैं, जिन्होंने CA से एक विशाल business empire खड़ा किया।

एक CA को लगा कि यह सब छोटा है, उसे देश के लिए काम करना और मर-मिटना है। और आज से दो महीने पहले उसने देश के लिए अपनी जिंदगी बलिदान कर दी—कर्नल मनप्रीत सिंह, जो कि CA थे।

मेरी पहली आपसे गुजारिश यह है कि CA बनने के बाद अपनी creative instinct को मरने मत दीजिए। कुछ creative कीजिए। कुछ भी हो सकता है—painting करना, कविता लिखना, film बनाना, films देखना। जो creative नहीं है, वह machine बन जाता है। कई विचारक कहते हैं कि जानवरों के पास पांच इंद्रियां होती हैं, और हमारे पास भी। तो हमें उनसे अलग क्या बनाता है? हमारी creativity।

इसलिए मेरी आपसे पहली गुजारिश यही है कि CA होते हुए कुछ ऐसा creative शौक पाल लीजिए कि दिन में एक घंटा मस्ती से गुजार सकें। गाना सीखिए, तबला बजाना सीखिए, harmonium या guitar सीखिए। कुछ ऐसा कीजिए, जिससे करते हुए आप डूब जाना चाहें। बस कुआं खोदना मत सीखना, उसमें डूबना मुश्किल हो जाएगा!

दूसरी चीज—एक उद्देश्य रखिए। वह छोटा हो सकता है, लेकिन होना चाहिए। जैसे, अपने आसपास दो-चार लोगों को financial समझ बढ़ाने में मदद करें—कैसे कमाएं, save करें, invest करें। या तीन-चार गरीब बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाएं। इससे आपके चेहरे पर चमक आएगी, और आप नफरत व प्रतिस्पर्धा से मुक्त होने लगेंगे।

तीसरी चीज—रिश्तों की अहमियत समझें। चाहे love, marriage, भाई, बहन, या friendship—अगर आपके जीवन में ऐसे खास रिश्ते नहीं हैं जिनमें आप खुलकर अपनी बात कह सकें, तो आप एक दिवालिया इंसान हैं। पैसा कितना भी हो, अगर जिंदगी में zero रिश्ते हैं तो वह कोई मायने नहीं रखता।

हम दिनभर खुद को छिपाने में लगे रहते हैं। समाज का principle ही ऐसा है। लेकिन कोई तो ऐसा इंसान हो, जहां आपको पर्दे की जरूरत न हो, जहां आप खुलकर अपने मन की हर बात कह सकें।

इसलिए, जिंदगी की balance sheet में सिर्फ पैसा नहीं, बल्कि creativity, emotional satisfaction और personal space भी जरूरी है।

आजकल लोग "me time" की बात करते हैं। अपने लिए हर दिन आधा या एक घंटा निकालिए। अगर आप खुद drive करते हैं, तो phone बंद कर दीजिए और अपने आप से बातें करिए। अगर नहीं मिलता time, तो घर पर या office में आधे घंटे कागज-कलम लेकर बैठिए और सोचिए कि आज का दिन आपकी जिंदगी में क्या योगदान दे रहा है।

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