संसार में मन क्यों भटकता है How To Control Your Mind In Hindi
मन का भटकना कोई समस्या नहीं, बल्कि एक संकेत है कि हम जहाँ हैं, वहाँ हमारा अस्तित्व सार्थक नहीं रह गया। जब जीवन में प्रेम, उद्देश्य या शांति का अभाव होता है, तो मन स्वतः ही उस स्थिति से पलायन करता है। एकाग्रता के नाम पर हम मन को जबरन बाँधने की कोशिश करते हैं, पर यह दमन है—समाधान नहीं। असली प्रश्न यह नहीं कि "मन क्यों भटकता है?", बल्कि यह कि "हम उसे ऐसा क्यों महसूस कराते हैं?" जब तक हम अपने कर्मों, विचारों और वातावरण को सत्य व शांति से नहीं जोड़ते, मन भटकता रहेगा। एकनिष्ठा (समर्पण) ही उसकी स्वाभाविक स्थिरता का मार्ग है, न कि जबरन थोपी गई एकाग्रता।
How To Control Your Mind In Hindi
हा जी क्या चाहते है आप की मैं आपको बता दूं कि मन को कैसे स्थिर करते हैं। सही ना? इसको बिल्कुल सही जगह पर एकाग्र कर दो, ठीक है ना? तो क्या इरादा है? जैसे कोई कसाई मुझसे आकर पूछे कि मेरे बकरे बहुत इधर-उधर भागते हैं, और मैं उसे बता दूं कि कैसे वह उन्हें नियंत्रित करे ताकि वह न भागें। यह तो भली बात है कि मन भाग जाता है, नहीं भागेगा तो तुम क्या करोगे? उसो कहां एकाग्र करने वाले हो? यह तो बताओ। मैं तुम्हें एकाग्रता तो चाहिए, और बहुत दुकानों पर एकाग्रता दिख रही है, बताया जा रहा है कि कंसंट्रेट कैसे करना है। पर कहां कंसंट्रेट करोगे, पहले मुझे यह बताओ। तो मैं अपने सड़े हुए दफ्तर में बैठा हूं, जहां सड़ा हुआ काम है, वहां से मन भाग रहा है। यह तो भली बात है कि भाग रहा है। मन भागकर तुम्हें यही बता रहा है कि जहां बैठ गए हो, वहा नहीं बैठना चाहिए। जिंदगी में जो भी कर रहे हो, वह इस लायक नहीं है कि तुम्हें शांति दे सके। तो वहां से भागता है मन। एक बार वह देखो ना, जो मन को चाहिए, फिर मुझे बताना कि केवल भागा क्या है। मन एकाग्र नहीं हो पाता, वह भले ही उनसे जिनका मन एकाग्र हो पाता है। अपने बच्चों को कंसंट्रेशन सिखाना मत देना। देखना कि लोग कहां-कहां मन को एकाग्र कर लेते हैं। दुनिया के बड़े से बड़े पाप हो रहे हैं एकाग्रता से। सब बड़े अपराधियों को देखो, उन्होंने बहुत एकाग्र होकर अपराध किए हैं। और दुर्भाग्य की बात है कि देखोगे तो अपराधी ज्यादा पाओगे। सत कार्य करने के लिए एकाग्रता नहीं, एक निष्ठा चाहिए। और इन दोनों में बहुत अंतर है। तो सही जीवन एकाग्रता से नहीं आता।
एकाग्रता और एकनिष्ठा में अंतर क्या होता है?
एकाग्रता में विषय तुम चुनते हो, जो तुम चाहते हो कि अब मुझे जरा एकाग्र हो जाना चाहिए। अपने बच्चों को बताते हो ना कि बेटा, आप एकाग्र होकर इतिहास पढ़ो। और एकनिष्ठा में तुम चुनने का अधिकार त्याग देते हो, वह एकनिष्ठा है। मन तुम्हारा इधर-उधर भागता है, इसीलिए क्योंकि तुम उसे सही जगह नहीं दे रहे। और मन बहुत जिद्दी है, उसे सही जगह नहीं दोगे तो वह भाग लेता है। तुम बहुत जबरदस्ती करोगे उसके मन भी कहेगा मैं अभी नहीं भागूंगा तो सपनों में भाग लूंगा। जो लोग अपने जीवन को संयमित कर लेते हैं, वे निष्कासित कर लेते हैं कि उनका मन मौका देखकर फिर सपनों में और दिल के क्षणों में बंधन तोड़कर भागता है। यह तुम्हें किसी को बंधक बनाकर रखना है, हिंसा करनी है या उसे प्रेमपूर्वक शांति देनी है? तो फिर क्यों नहीं बोलते कि बहुत डरते हो? डर का इलाज करो ना, अपने बच्चे की जान ले रहे हो। तुम दुनिया से इतना खौफ खाते हो और वही चीज अपने बच्चे में घुसेड़ रहे हो फिर बोलते हो कि वह भाग रहा है इधर-उधर। एकाग्रता के पीछे लालच होता है, एकाग्रता के पीछे डर होता है। एकनिष्ठा में प्रेम होता है। अगर किसी को से बंदूक दिखा दी जाय तो फिर देखे वह कैसे एकाग्रता हो जायेगा
स्थिति बिल्कुल स्थिर हो जाएगी। ये सभी विचार आने बंद हो जाएंगे, और समाधि पूर्ण रूप से लग जाएगी। अभी तक आप इस सब में व्यस्त थे—जैसे कि वह बंदूक वाला ऐप चाहिए था। जो पीछे वाला योग है, उसमें मैं जैसी दिख रही हूँ, वैसा दूसरा होता है।
एकाग्रता कैसी होती है और कितने प्रकार की होती है? बताओ। एकाग्रता सदैव अहंकार को बल देती है, क्योंकि जिस वस्तु पर आप एकाग्र होते हैं, वह या तो आपको प्रिय होती है या अप्रिय। प्रिय हो तो आप उसकी ओर आकर्षित होते हैं, अप्रिय हो तो उसके विरुद्ध कार्य करते हैं। एकाग्रता का संबंध अहंकार से है, अध्यात्म से नहीं। अध्यात्म एकाग्रता नहीं सिखाता।
यह कार्यक्रम का अर्थ है कि हम अब और अधिक ठोस हो गए हैं। जो बिखरा हुआ अहंकार था, वह अब एक पिंड की तरह संकेंद्रित हो गया है—एक जान हो गया है, ठोस हो गया है, स्टेराइल हो गया है। अध्यात्म उस पिंड को भुलाने के बारे में है।
क्या आप मुझे सुन रहे हैं? यह एकाग्रता नहीं है; जो आप अभी अनुभव कर रहे हैं, वह 'एकनिष्ठा' कहलाती है। एक विचार है, और विचलन न तो एकाग्रता में दिखता है, न ही एकनिष्ठा में। लेकिन दोनों में बहुत बड़ा अंतर है।
अभी भी, आपमें से कई ऐसे होंगे जिनके विचार इधर-उधर नहीं भाग रहे होंगे। यहाँ विचारों के विचलित न होने का कारण एकाग्रता नहीं, बल्कि ज्ञान है। आप बिना किसी कारण के, बिना किसी भय या लालच के, सिर्फ़ 'होने' की अवस्था में बैठे हैं
मैं जीवन में कुछ ऐसा लेकर आई हूँ जहाँ एकाग्रता की आवश्यकता ही नहीं होती
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