स्वामी विवेकानंद की सीख : अपने काम पर Focus करो
एकाग्रता: सफलता की कुंजी – स्वामी विवेकानंद की प्रेरणादायक कहानियाँ
स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि "एकाग्रता सफलता की चाबी है। जब आप अपनी ऊर्जा को एक दिशा में लगाते हैं, तब असंभव भी संभव हो जाता है।"
इस विचार को समझने के लिए हम स्वामी जी की तीन कहानियों के माध्यम से यह जानेंगे कि Attention कैसे केंद्रित किया जाए और सफलता कैसे प्राप्त की जाए।
---
पहली कहानी: ध्यान केंद्रित करने की शक्ति
एक दिन स्वामी विवेकानंद एक पार्क में बैठे थे। उन्होंने देखा कि एक लड़का एक खाली पृष्ठ पर कठिन श्लोक लिखने की कोशिश कर रहा था, लेकिन बार-बार गलतियाँ होने के कारण वह पन्ना फाड़कर फिर से लिखने लगता। कुछ समय बाद, जब उसका ध्यान स्वामी जी पर गया, तो वह उनके पास पहुँचा और प्रणाम करके बोला—
"स्वामी जी, मैं तीन घंटे से यह श्लोक सही लिखने की कोशिश कर रहा हूँ, लेकिन बार-बार गलती हो जाती है, जिससे मुझे फिर से शुरू करना पड़ता है। मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं क्यों असफल हो रहा हूँ।"
स्वामी विवेकानंद मुस्कुराए और बोले—
"बेटा, इसका कारण सिर्फ ध्यान की कमी है। जब इंसान अपनी ऊर्जा बेकार की बातों और आदतों में बर्बाद कर देता है, तो उसका मन भटकता रहता है। ध्यान से काम करने का अर्थ है अपनी पूरी ऊर्जा एक जगह लगाना। जब तुम बार-बार अभ्यास करोगे, तो मन इसके लिए तैयार हो जाएगा और गलतियाँ कम हो जाएँगी।"
लड़के ने पूछा—
"स्वामी जी, अगर मन बार-बार भटकता हो तो मैं एक काम पर ध्यान कैसे लगाऊँ?"
स्वामी जी ने पूछा—
"जब तुम लिखते हो, तो क्या किसी व्यक्ति या घटना के बारे में सोचते हो?"
लड़के ने सिर झुकाकर कहा—
"हाँ गुरुजी, आज छुट्टी का दिन है, और सब बच्चे बाहर खेल रहे हैं। लेकिन मुझे यह काम पूरा करना है, इसलिए मेरा ध्यान बार-बार खेल की ओर चला जाता है।"
स्वामी जी मुस्कुराए और बोले—
"अब इन सरल उपायों को अपनाओ, फिर तुम एकाग्र होकर काम कर सकोगे—"
1. गहरी साँसें लो
जब तुम्हारा मन भटके, तो पाँच गहरी साँसें लो और अपना ध्यान काम और खेल दोनों से हटाकर सिर्फ अपनी साँसों पर केंद्रित करो। जितना तुम अपनी साँसों को देखोगे, उतना ही तुम्हारा मन शांत होगा।
2. काम को महसूस करो
जब तुम लिख रहे हो, तो पेन की पकड़, लिखने की आवाज़, और कागज़ पर चलती स्याही—इन सभी चीजों को बारीकी से महसूस करो। जब तुम हर छोटी चीज़ पर ध्यान दोगे, तो तुम्हारा ध्यान भटकना कम हो जाएगा और तुम्हारी पूरी ऊर्जा एक ही काम में लग जाएगी।
लड़के ने स्वामी जी की सलाह मानी। उसने गहरी साँसें लीं और ध्यान केंद्रित करके लिखना शुरू किया। कुछ ही देर में उसकी गलतियाँ कम हो गईं और उसने श्लोक बिना गलती के लिख लिया। उसने खुशी-खुशी स्वामी जी को धन्यवाद दिया।
स्वामी जी मुस्कुराए और बोले—
"याद रखो, जब मन और इंद्रियाँ एक साथ एक कार्य में लगती हैं, तो ध्यान गहरा हो जाता है। यही सच्ची सफलता है।"
---
दूसरी कहानी: लक्ष्य प्राप्ति में ध्यान का महत्व
एक दिन एक युवक स्वामी विवेकानंद के पास आया। उसके चेहरे पर हताशा और निराशा झलक रही थी। उसने कहा—
"स्वामी जी, मैं बहुत समय से परीक्षा की तैयारी कर रहा हूँ, लेकिन हर बार असफल हो जाता हूँ। मुझे समझ नहीं आ रहा कि मेरी गलती कहाँ हो रही है।"
स्वामी जी ने उसकी बात ध्यान से सुनी और पूछा—
"क्या तुम सच में परीक्षा पास करना चाहते हो?"
युवक ने उत्साह से कहा—
"हाँ स्वामी जी, मैं बहुत मेहनत करने को तैयार हूँ, बस मुझे यह बता दीजिए कि मुझे क्या करना होगा?"
स्वामी जी उसे एक खुली जगह पर ले गए, जहाँ एक पुरानी मोमबत्ती और माचिस रखी थी। उन्होंने युवक को मोमबत्ती पकड़ा दी और कहा—
"इसे जलाकर उस पेड़ तक ले जाओ, लेकिन ध्यान रहे कि मोमबत्ती बुझनी नहीं चाहिए।"
युवक ने मोमबत्ती जलाई और धीरे-धीरे पेड़ की ओर बढ़ा। लेकिन जैसे ही हल्की हवा चली, लौ कांपने लगी और बुझ गई। उसने कई बार कोशिश की, लेकिन हर बार मोमबत्ती बुझ जाती। अंत में वह थककर स्वामी जी के पास लौटा और बोला—
"स्वामी जी, मैं इसमें भी असफल रहा।"
स्वामी विवेकानंद मुस्कुराए और बोले—
"तुम्हारा मन भी इस मोमबत्ती की लौ की तरह है और हवा तुम्हारे ध्यान भटकाने वाली आदतें हैं। जब तक तुम इन आदतों पर नियंत्रण नहीं करोगे, तब तक तुम्हारा ध्यान बार-बार भटकेगा। जब तक तुम अपने लक्ष्य पर पूरी तरह ध्यान केंद्रित नहीं करोगे, तब तक सफलता नहीं मिलेगी।"
युवक ने सिर झुकाया और स्वामी जी की बात को समझ लिया।
---
तीसरी कहानी: विचारों को नियंत्रण में रखना
एक दिन एक युवक ने स्वामी विवेकानंद से पूछा—
"स्वामी जी, मन में आने वाले विचारों को कैसे नियंत्रित करें?"
स्वामी जी ने कहा—
"मैं बताऊँगा, लेकिन पहले तुम्हें एक परीक्षा देनी होगी।"
उन्होंने एक गिलास पानी भरकर युवक को दिया और कहा—
"इसे बिना एक बूंद गिराए पकड़े रहो।"
युवक ने कहा—
"यह तो आसान है।"
शुरुआत में वह स्थिर खड़ा रहा। लेकिन कुछ देर बाद उसके मन में विचार आने लगे—
"कितनी देर तक पकड़े रहना होगा? क्या होगा अगर पानी गिर गया?"
जैसे ही उसके मन में संदेह उठा, वह असहज महसूस करने लगा और थोड़ी देर में पानी छलक गया।
स्वामी जी मुस्कुराए और बोले—
"जब तक तुम्हारा मन शांत था, तब तक पानी नहीं गिरा। लेकिन जैसे ही विचार आए, तुम्हारा ध्यान भटक गया और पानी गिर गया।"
उन्होंने आगे समझाया—
"तुम्हारा मन भी इस गिलास के पानी की तरह है। अगर तुम इसे स्थिर रखना चाहते हो, तो विचारों को नियंत्रित करना सीखो।"
फिर उन्होंने कहा—
"अब इस गिलास को फिर से पकड़ो और ध्यान अपनी साँसों पर ले आओ। अपनी साँस को पेट और सीने में आते-जाते महसूस करो। मन में आने वाले विचारों को बहने दो और खुद को याद दिलाओ कि तुम विचार नहीं हो, बल्कि उन्हें देखने वाले व्यक्ति हो।"
युवक ने यह अभ्यास किया और पाया कि अब उसका ध्यान अधिक स्थिर हो गया था।
स्वामी विवेकानंद बोले—
"अगर तुम इस अभ्यास को नियमित रूप से करोगे, तो तुम्हारा मन शांत हो जाएगा और कोई भी कठिन कार्य करना तुम्हारे लिए सहज हो जाएगा।"
युवक ने उन्हें धन्यवाद दिया और मन को नियंत्रित करने का यह अमूल्य पाठ सीखकर घर लौट गया।
---
निष्कर्ष
स्वामी विवेकानंद की ये कहानियाँ हमें सिखाती हैं कि ध्यान और एकाग्रता सफलता की कुंजी हैं। जब मन और शरीर पूरी तरह से किसी कार्य में लगते हैं, तो असंभव भी संभव हो जाता है। इसलिए, अपनी आदतों को सुधारें, ध्यान केंद्रित करें और सफलता की ओर बढ़ें!
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें