इन जगहो पर चुप रहना सही रहता है : एक युवक एक बौद्ध भिक्षुक के पास पहोचा
आपका अपमान ही होगा! जरा तुम खुद सोचो, जब कोई बीमार आदमी अपनी बीमारी के बारे में चर्चा कर रहा हो और तुम्हें उस बीमारी के बारे में कोई ज्ञान न हो, लेकिन फिर भी तुम व्यर्थ में उसे ऐसी औषधियां बता रहे हो जिनका उसकी बीमारी से कोई लेना-देना नहीं है, तो ऐसे में तुम अपना Respect अपने ही हाथों से खो रहे होते हो और तुम्हें पता भी नहीं चलता। ऐसी परिस्थिति में इंसान को हमेशा सुनना चाहिए। ध्यान से सुनना भी एक कला होती है। अगर तुम सुनने का सिर्फ दिखावा करोगे, तो कहीं न कहीं सामने वाले को यह एहसास हो जाएगा कि तुम उसकी बात पूरी तरह से नहीं सुन रहे हो।
इसलिए, जब किसी विषय की पूरी जानकारी न हो, तो वहां पर केवल अपने कान लगाना ही ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। तुम सामने वाले की बातें ध्यान से सुन सकते हो, और इसी बीच तुम दोनों के बीच एक सच्चा संबंध पैदा होगा, क्योंकि तुमने उसकी बातों को बड़े ध्यान से सुना है। यह बात सामने वाले को भी पता चलती है। इसलिए, बिना कुछ बोले, केवल सुनने मात्र से भी तुम किसी को अपना मित्र बना सकते हो।
भोजन करते समय मौन रहना
दूसरी जगह, जहां इंसान को हमेशा चुप रहना चाहिए, वह है – भोजन करते समय।
भोजन इंसान को हमेशा मौन रहकर करना चाहिए, शांत भाव से, परिपूर्ण होकर। भगवान बुद्ध और उनके शिष्य हमेशा चुप रहकर भोजन करते थे। वे प्रत्येक टुकड़े का स्वाद लेकर भोजन करते थे, और इस तरह जब वह भोजन शरीर में पहुंचता था, तो शरीर को संपूर्ण ऊर्जा प्रदान करता था।
अक्सर, हम भोजन करते time कुछ न कुछ बोलते रहते हैं या सुनते रहते हैं। लेकिन हम silence रहकर, पूरी तरह से स्वाद लेकर भोजन नहीं करते। यही कारण है कि हमारा शरीर रोगों से ग्रसित हो जाता है। जरा सोचो, बौद्ध भिक्षु हमेशा मामूली-सी भिक्षा लेकर भोजन करते थे, और वह भी दिन में केवल एक बार। इसके बावजूद वे स्वस्थ, उत्साहित और आनंद से भरे होते थे।
दूसरी ओर, हम तरह-तरह के पकवान खाते हैं, लेकिन फिर भी हमारे शरीर में वह ऊर्जा नहीं होती। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि हम अपने भोजन को होश में रहकर, परिपूर्णता के साथ और मौन रहकर नहीं करते। इसलिए, हमेशा याद रखो – भोजन मौन रहकर करो।
गुस्से में शांत रहना
तीसरी जगह, जहां अगर तुमने चुप रहना सीख लिया, तो इसका मतलब होगा कि तुमने अपने ऊपर विजय हासिल कर ली – गुस्से में मौन रहना।
गुस्से में शांत रहना इतना आसान नहीं होता। अक्सर, गुस्से में हम ऐसे शब्द या अपशब्द बोल जाते हैं, जिनका पछतावा हमें हमेशा रहता है। लेकिन जुबान से निकला हुआ शब्द कभी वापस नहीं आ सकता। वह शब्द जीवनभर हमारे दामन से जुड़ा रहता है और समय-समय पर हमारे मन को बेचैन करता है।
गुस्से में चुप रहना भी एक बड़ी कला होती है। जब गुस्सा आता है, तो इंसान अपनी इंद्रियों पर काबू नहीं रख पाता। इस कला को तभी सीखा जा सकता है, जब तुम होश में रहकर गुस्सा करना सीखो।
जब भी तुम्हें गुस्सा आए, बस एक ही बात याद रखो – मुझे चुप रहना है। मुझे किसी को अपशब्द नहीं कहना है।
अगर तुम यह विचार अपने गुस्से के साथ जोड़ लोगे और इसे अपनी आदत बना लोगे, तो धीरे-धीरे तुम अपने गुस्से को काबू में करना सीख जाओगे।
जब भी Anger आए, किसी से झगड़ने की बजाय कुछ शारीरिक व्यायाम करो – उछलो, दौड़ो, जिम जाओ, या कुछ भी ऐसा करो जिससे तुम्हारा शरीर थक जाए। तुम देखोगे कि जब शरीर थक जाता है, तो मन भी शांत हो जाता है। इस तरह तुम अपने गुस्से की ऊर्जा को सकारात्मक दिशा में बदल सकते हो। यही बुद्धिमान व्यक्ति की पहचान होती है।
बातचीत के दौरान संयम रखना
चौथी जगह, जहां चुप रहना सबसे अच्छा होता है – जब चार लोग आपस में चर्चा कर रहे हों।
अगर चार लोग किसी विषय पर बातचीत कर रहे हैं, तो एक बार में केवल एक ही व्यक्ति बोल सकता है, और बाकी तीन को सुनना चाहिए। तभी चर्चा सार्थक होगी। लेकिन अगर कोई व्यक्ति बीच में ही किसी की बात काटकर अपनी बात ऊपर रखना चाहता है, तो पूरी बातचीत व्यर्थ हो जाएगी।
अगर तुम्हें अपनी बात कहनी है, तो सामने वाले को पहले अपनी बात पूरी करने दो। फिर तुम अपने विचार रखो। यही एक संस्कारी और बुद्धिमान व्यक्ति की पहचान होती है।
बड़ों के सामने मौन रहना
आखिरी जगह, जहां तुम्हें चुप रहना चाहिए – जब माता-पिता या बड़े बुजुर्ग तुम्हें डांटते हैं।
अगर माता-पिता तुम्हें किसी बात पर डांट देते हैं, या गुस्से में कोई सख्त बात कह देते हैं, तो चुप रहना ही उनके प्रति सम्मान दिखाने का सबसे अच्छा तरीका है।
अगर तुम उनकी डांट का जवाब देने लगो, तो उनका गुस्सा तो थोड़ी देर में शांत हो जाएगा, लेकिन तुम्हारे जवाब देने का असर हमेशा रहेगा। उन्हें लगेगा कि "अब यह हमारी इज्जत नहीं करता, हमारी बात नहीं मानता।"
इसलिए, ऐसी स्थिति में मौन रहो, चुप रहो। अगर गुस्सा आए, तो उसे खुद में समा लो। कुछ व्यायाम कर लो, दौड़ लगा लो, भाग लो। तुम्हारा मन खुद-ब-खुद शांत हो जाएगा।
शब्दों का सही प्रयोग
अंत में, बौद्ध भिक्षु ने कहा – "कम शब्दों में अपनी भावनाओं को व्यक्त करना सीखो।"
शब्द हथियार की तरह होते हैं। बोलो, लेकिन होश में बोलो। ध्यानपूर्वक बोलो। तुम्हारी जीवनशैली ऐसी होनी चाहिए कि जब भी तुम बोलो, प्रेम और आनंद के साथ बोलो।
ऐसी वाणी बोलो, जो दूसरों के दिल को शांति दे, न कि दुख पहुंचाए।
यह तभी संभव है, जब तुम हर पल होश में रहकर बोलने की कला सीख जाओगे।
यह सुनकर राम बौद्ध भिक्षु के सामने नतमस्तक हो गया और उन्हें प्रणाम करके अपने घर लौट गया।
उम्मीद करता हूं कि यह कहानी तुम्हें जरूर पसंद आई होगी।
अगर पसंद आई हो, तो इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर साझा करो।
धन्यवाद!
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें