क्या काम मे मन नही लगता? क्या आपको भी काम टालने की आदत है
क्या काम मे मन नही लगता? क्या आपको भी काम टालने की आदत है
इस लेख में जीवन के गहरे पहलुओं और वास्तविक लक्ष्य की पहचान पर चर्चा की गई है। लेखक ने Examples के माध्यम से यह समझाने की कोशिश की है कि हम जो लक्ष्य निर्धारित करते हैं, क्या वे सचमुच हमारे लिए उपयुक्त हैं या नहीं। यह बात भी उठाई गई है कि बाहरी प्रभावों से प्रेरित होकर हम अक्सर ऐसे लक्ष्य चुन लेते हैं जो हमारे अस्तित्व से मेल नहीं खाते, और फिर उनका पीछा करते हुए हम अपनी ऊर्जा और समय की बर्बादी करते हैं। लेख में यह भी बताया गया है कि जीवन में सही दिशा और उद्देश्य जानने के लिए खुद को जानना जरूरी है। अगर हम अपने भीतर की कमी को नहीं समझेंगे, तो किसी भी उद्देश्य या लक्ष्य को पाने में कठिनाइयाँ आ सकती हैं। इस लेख का मुख्य उद्देश्य यह है कि हमें अपने सच्चे उद्देश्य और लक्ष्य को समझने के लिए आत्मविश्लेषण करना चाहिए और केवल बाहरी दबावों के आधार पर निर्णय नहीं लेने चाहिए।
वास्तविक महाभारत की लड़ाई और हमारे जीवन के लक्ष्य
वास्तविक महाभारत की लड़ाई अर्जुन और कृष्ण के बीच हुई थी। यह युद्ध एक ऐसी स्थिति को प्रदर्शित करता है, जहां हिंसा की कोई आवश्यकता नहीं थी क्योंकि अर्जुन की हार में ही उसकी भलाई छुपी हुई थी। जब हम जीवन के संघर्षों को देखते हैं, तो हमें समझना चाहिए कि असल में क्या हमारे लिए सही है और क्या नहीं। अर्जुन का हारना इसलिए आवश्यक था, ताकि वह सही रास्ते पर चल सके। और यही हमारे जीवन में भी लागू होता है, जहां कभी-कभी हमारी असफलताएं हमें सही दिशा में मार्गदर्शन करती हैं।
हमारा जीवन अक्सर इस तरह की लड़ाइयों से भरा होता है, लेकिन सबसे बड़ी लड़ाई हमारी अपनी मानसिकता और विचारों के खिलाफ होती है। हम किसी भी कार्य की शुरुआत करते हैं और उसे दो या तीन दिन से ज्यादा नहीं निभा पाते। यह तब होता है जब हम यह नहीं समझ पाते कि हमें क्या करना है और क्यों करना है। यह हमारी जीवन यात्रा का हिस्सा है, जब हम लक्ष्य निर्धारित करते हैं, लेकिन वह अक्सर बाहरी परिस्थितियों या हमारी जटिलताओं से प्रभावित होते हैं। हम अक्सर यह नहीं जान पाते कि हमें किस दिशा में जाना है और क्यों।
हमारे द्वारा चुने गए अधिकांश लक्ष्य ऐसे होते हैं कि जैसे ही हम किसी और को चलते हुए देखते हैं, तो हम भी वही रास्ता अपना लेते हैं। यह बिल्कुल वैसे ही है जैसे हम किसी दोस्त या सहकर्मी को एक नए लक्ष्य के प्रति प्रेरित होते हुए देखते हैं और फिर हम भी उसी रास्ते पर चल पड़ते हैं। जैसे अगर परीक्षा की तारीख पास आ रही है, तो हम उसे अपने लक्ष्य के रूप में चुन लेते हैं, बिना यह समझे कि वह हमारे लिए सही है या नहीं।
हमारे लक्ष्य केवल तब तक ही प्रेरणादायक होते हैं, जब तक वे हमें बाहरी घटनाओं और परिस्थितियों से प्रेरित करते हैं। जैसे उदाहरण के तौर पर, अगर आप 1 जनवरी को संकल्प लेते हैं कि आप हर रोज Morning 5 बजे उठेंगे और दौड़ने जाएंगे, तो यह संकल्प जनवरी के पहले दिन का था, लेकिन जैसे ही सर्दी का मौसम आता है और सुबह उठने की हिम्मत नहीं होती, तो यह लक्ष्य धीरे-धीरे खो जाता है। यह लक्ष्य बाहरी परिस्थितियों से जुड़ा था और इसका कोई स्थायी असर नहीं पड़ा।
जब हम किसी लक्ष्य को तय करते हैं, तो हमें यह समझना चाहिए कि वह लक्ष्य हमारी अंदरूनी इच्छाओं और जरूरतों से जुड़ा होना चाहिए, तभी वह स्थायी और प्रभावशाली रहेगा। यदि हम अपने लक्ष्यों को बाहरी परिस्थितियों से जोड़कर बनाते हैं, तो वे कभी भी हमारे जीवन का हिस्सा नहीं बन पाएंगे और हम बार-बार उनमें असफल होंगे।
लक्ष्य तभी सफल होता है, जब वह हमारे भीतर से निकलता है और हमें उससे तृप्ति मिलती है। यह बिलकुल वैसा ही है जैसे आप किसी दुकान पर जाते हैं और वह दुकान आपके लिए सही नहीं होती। आप किसी नमक की दुकान में प्रवेश करते हैं, जबकि आपको असल में शक्कर की आवश्यकता है। आप शक्कर की दुकान पर नहीं जाते, क्योंकि आपको यह नहीं पता होता कि असल में आपको क्या चाहिए। जब आप दूसरों के रास्ते पर चलते हैं, तो वह आपकी आत्मा और इच्छाओं के खिलाफ होता है, क्योंकि वह रास्ता किसी और का होता है, न कि आपका।
हमारे द्वारा चुने गए लक्ष्य हमारी असल जरूरतों के खिलाफ हो सकते हैं। जैसे, आप एक दवाई की दुकान पर जाते हैं और किसी और व्यक्ति ने जो दवाइयां ली हैं, वही आप भी ले लेते हैं। यह केवल तभी सही हो सकता है जब आपकी समस्या और उस व्यक्ति की समस्या समान हो, लेकिन जब आप अपनी समस्या को ठीक से नहीं समझते, तो वह दवाइयां आपके लिए उपयोगी नहीं होंगी। यही स्थिति हमारे जीवन के लक्ष्यों के साथ भी होती है। हम बिना यह समझे कि हमें किस चीज़ की कमी है, दूसरों के जैसे ही लक्ष्य अपनाते जाते हैं, और फिर जीवन में परेशानियों का सामना करते हैं।
आप कभी किसी चिकित्सक के पास गए होंगे और उन्होंने सबसे पहले आपसे परीक्षण की रिपोर्ट मांगी होगी, ताकि यह समझा जा सके कि शरीर में कौन सी कमी है। डॉक्टर के लिए यह जानना जरूरी है कि शरीर में क्या कमी है, तभी वह सही दवाइयां दे सकता है। अगर आप यह नहीं जानते कि आपकी समस्या क्या है, तो फिर आप कभी भी सही समाधान नहीं पा सकते। यही स्थिति हमारे लक्ष्यों के साथ भी है। जब तक हम यह नहीं समझते कि हमारी असल जरूरत क्या है, हम किसी भी लक्ष्य के पीछे भागते रहेंगे, जो हमें कभी तृप्ति नहीं देगा।
इसलिए सबसे पहले हमें यह समझना चाहिए कि हम वास्तव में क्या चाहते हैं। जब हम अपने अंदर की आवाज को पहचानते हैं और समझते हैं कि हमारा लक्ष्य किस दिशा में होना चाहिए, तो हम सही रास्ते पर चल सकते हैं। अगर हम बार-बार खुद से यह सवाल पूछते रहें, "मैं सचमुच क्या चाहता हूं?" What do I really want? तो धीरे-धीरे हमें इसके उत्तर मिलेंगे और हमारा जीवन स्पष्ट होता जाएगा। यह सवाल कभी खत्म नहीं होता, क्योंकि जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते हैं, हमारे लक्ष्य बदलते रहते हैं और हमें अपनी इच्छा और उद्देश्य के बारे में गहरे ज्ञान की आवश्यकता होती है।
आपने कभी यह महसूस किया है कि कुछ समय तक कुछ चीज़ों को करने के बाद भी हमें संतुष्टि नहीं मिलती? यह इसलिए होता है क्योंकि हम अपने लक्ष्य को सही तरह से नहीं पहचान पाते। जब आप खुद से यह सवाल पूछते हैं, तो धीरे-धीरे आपको इसका उत्तर मिल जाता है। जीवन के हर चरण में, जब हम खुद को सही तरह से समझते हैं, तो हमारे लक्ष्य भी साफ होते जाते हैं। अगर हम अपने अस्तित्व और जीवन के उद्देश्य को समझ पाते हैं, तो फिर हम किसी भी दिशा में बिना रुकावट के आगे बढ़ सकते हैं।
इसलिए जरूरी है कि हम अपने भीतर की आवाज को पहचानें, अपनी सही दिशा को जानें और उसी दिशा में अपनी पूरी ऊर्जा और प्रयास लगा दें। जब आप अपने भीतर के सत्य को पहचानेंगे, तो आप अपनी जीवन यात्रा में आने वाली हर चुनौती को पार कर सकेंगे और अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकेंगे।
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