अहंकार के संहार का पर्व | होली का सही अर्थ



लोगों ने यह जो नाम है, "होली", लगता है इसका कुछ गलत अर्थ कर लिया। उन्हें लगा होली का मतलब है कि आज होलिका माता को याद करना है और उनको प्रेम से श्रद्धांजलि अर्पित करनी है। बेचारि ने अपनी शहादत दी थी।

आज holi का असली मतलब समझते हैं हम— होली का मतलब है कि कोई भी कीमत देनी पड़ जाए और कितना भी ताकतवर हो, झूठ का साथ नहीं देना है।

प्रह्लाद का बाप भी था, और छोटू ने कहा—

"तुम चाहे राजा हो, चाहे बाप हो, मैं तुम्हारा साथ नहीं दूंगा।"

और वह कोई साधारण राजा नहीं था। वह वरदान प्राप्त राजा था। अगर पौराणिक कथा पर विश्वास करें, तो कथा कहती है कि उसने वरदान ले लिया था—

दिन में नहीं मरेगा, रात में नहीं मरेगा।

अस्त्र से नहीं मरेगा, शस्त्र से नहीं मरेगा।

आदमी से नहीं मरेगा, पशु से नहीं मरेगा।

खतरनाक राजा था। इतना खतरनाक कि उसने पूरे राज्य में पाबंदी लगा दी—

"अब कोई किसी सत्य का या ईश्वर वगैरह का नाम नहीं लेगा। मेरी पूजा करो।"

क्योंकि सत्य अमर होता है

ना और अनंत।

जिसका कोई अंत नहीं हो सकता।

"मेरा भी अंत नहीं हो सकता, क्योंकि अब मैं मर ही नहीं सकता।"

"तू मेरी पूजा कर!"

और छोटू ने बोला— "नहीं चलेगा!"

अब बहन को बीच में लाया गया। क्यों?

हो सकता है, इसीलिए लाया गया हो कि लगे— "भाई बुआ के साथ घूम रहा था, बेचारा दुर्घटना में मारा गया!"

कहने वाले कहते हैं कि कुछ ऐसी हवा चली कि बुआ जी ने जो पहन रखा था, वो उड़ करके प्रह्लाद पर चला गया।

तो प्रह्लाद तो बच गया!

समाज कुछ कहता है, प्रकृति कुछ कहती है, परिस्थिति कुछ कहती है, सत्ता कुछ कहती है— लेकिन मुझे वही करना है, जो सही है।

यही होली है।

अब इसमें यह हुल्लड़ कहां से आ गया?

कीचड़, फालतू हरकतें, भाभी को रंगना— यह कहां से आया?

समझो— लोगों को भाभियों से बहुत प्यार हो जाता है होली के दिन।

आधे शहर की औरतें उस दिन "भाभी" हो जाती हैं।

अब राजा को गुस्सा आया।

एक लोहे का खंभा बिल्कुल गरम कर दिया

अब छोटू को डर तो लगा होगा।

पर प्रह्लाद बोला— "ठीक है, पर आपको तो नहीं मानूंगा!"

भगवान, दुनिया को आप बुद्धू बना सकते हो, मुझे तो पता है ना, आप कौन हो?

"नहीं मानूंगा!"

और फिर कहानी में...

समय क्या हो रहा था?

सूर्यास्त हो रहा था।

ना दिन था, ना रात थी।

और उसने पकड़ लिया...

हिरण्यकश्यप।

बड़ी तपस्या की।

लेकिन वरदान क्या मांगा?

"मैं मरूं नहीं, मैं ही राजा बन जाऊं!"

पर उसका इस्तेमाल किसलिए किया?

हम बहुत सारे अनुशासित लोगों को देखते हैं।

पर किसलिए?

इतने अनुशासित हो, तुम पाना क्या चाहते हो?

बड़ा अनुशासन दिखाया, लेकिन किसलिए?

अपने अहंकार को और बढ़ाने के लिए!

और फिर बड़ी चालाकी भी दिखाई।

तुम एक नन्हे बच्चे की सरलता की सफलता का उत्सव मना रहे हो।

तुम दुर्दांत सम्राट के अहंकार और चालाकी की पराजय का वैभव बना रहे हो।

इसमें चिकन और दारू कहां से आ गए?

बोलो।

यह कर जा रहे हैं धर्म के नाम पर?

हम किस हिसाब से अपने आप को हिंदू बोलते हैं?

होली किसलिए रखी जाए?

परम सत्ता से तो नीचे ही रहेगा।

तुम्हारी कोई भी चाल, सच को नहीं जीत लेगी।

यह अहंकार नहीं, सरलता की जीत का त्यौहार है।

कुछ नहीं था छोटू के पास।

लेकिन जीता।

और जो-जो लगे हुए थे, उसको मारने में, सब साफ हो गए।

त्यौहार बताता है तुमको कि—

चाहे कितने भी कमजोर हो।

चाहे कितने भी छोटे हो।

गलत जगह, तुम्हारे अपने बाप की ही क्यों न हो।

सत्य से मतलब रखना है।

जिससे तुम्हारा प्राकृतिक संबंध है।

जिससे तुम्हारा देह का रक्त संबंध है।

प्रकृति के आगे सिर नहीं झुका देना है।

यही होली है!

बाप का अर्थ यहाँ पर प्रकृति से है।

प्रकृति के आगे सर नहीं झुकाना है।

सर तो सच के आगे ही झुकेगा।

और यह कहानी एक खौफनाक सच बताती है—



प्रह्लाद के साथ भी यही हुआ।

उसे मारने के लिए दूर के लोग नहीं आए।

बल्कि उसकी अपनी बुआ और उसका अपना बाप ही उसे मारने में लग गए।

कहानी कहती है—

"प्रह्लाद इसलिए बच गया क्योंकि उसके पास एक छोटी सी राख थी, जिससे उसे डर नहीं लग रहा था।"

और उसकी बुआ जल गई।

कुछ ऐसा ही था।

अब सवाल उठता है—

होली का संबंध शराब से कैसे लग गया?

तुम्हारी मुर्गे से दुश्मनी क्या है?

कोई भी त्यौहार आए, उसे विकृत कर ही देना है, नहीं?

अभी महाशिवरात्रि भी थी।

तो उसमें भांग, गांजा और यह सब मिला दिया गया।

"बम-बम भोले" के साथ!

शर्म नहीं आती?

मैं तो भोले का भूत हूँ।

जब मैं त्यौहार बनाऊँगा, तो बहुत सोच-समझकर बनाऊँगा।

हर त्यौहार आपको कुछ याद दिलाने के लिए आता है।

यह एक अनुभव है, एक रिमाइंडर।

साधारण चीजें, जो आप रोजमर्रा की जिंदगी में भूल जाते हैं, त्यौहार उन पर जमी धूल हटाने के लिए आते हैं।

त्यौहार साल में दो, पाँच, दस बार जीवन के मूलभूत सिद्धांतों को फिर से याद दिलाने के लिए आते हैं।

इसलिए त्यौहार को चेतना के विशेष अनुशासन के साथ मनाना होगा।

ना कि उस दिन खुद को और ज्यादा छूट देनी है बेवकूफियों और बदतमीजियों की।

अब देखो,

जितने जानवर आम दिनों में नहीं कटते, त्यौहार के दिन कट जाते हैं।

यह कौन सा त्यौहार है?

चाहे होली हो|

चाहे क्रिसमस हो।


मैं पूछना चाहता हूँ—

"यह कौन से त्यौहार हैं, जो निर्दोष जानवरों का खून बहाए बिना मनाए नहीं जा सकते?"

और होली पर तो कभी यह परंपरा थी ही नहीं!

अब प्रभाव यह पड़ रहा है कि होली और दिवाली पर भी मांस खाना प्रचलित हो रहा है।

कौन सिखा रहा है यह सब?

क्योंकि बचपन में तो ऐसा कुछ नहीं सुना था!

यह नई बात है, जो पिछले 10-20 साल में भारत की चेतना पर चढ़ी है।

"दारू पियो, मांस खाओ!"

अब तो अपने धर्म पर भी यह चीज चढ़ा ली है—

"दारू पियो, मांस खाओ!"

साधारण जीवन पर तो चढ़ ही गई है।

अब हाल यह है कि भारत में सिर्फ 25-30% लोग ही शाकाहारी बचे हैं।

जबकि कुछ दशक पहले आधे से ज्यादा भारतीय शाकाहारी थे!

अब यह सब कहाँ से सीख लिया?

किसका प्रभाव पड़ रहा है भारत की चेतना पर?
---

अब देखो, इस दिन लोग क्या कर रहे हैं—

एक-दूसरे को रंग लगाते हैं।

जवान लड़के मोटरसाइकिल पर निकलते हैं।

और एक-दूसरे पर अंडे, कीचड़ फेंकते हैं।


मुझे यह सब झूठा और बेकार लगता है।

इसलिए इस बार मैंने निर्णय लिया है—

"मैं इस दिन एकांत में अपने साथ समय बिताऊँगा।"

अब कोई पूछ रहा है—

"आचार्य जी, कृपया बताएं कि होली मनाने का सही तरीका क्या है?"

ताकि मैं अपने साथियों को भी बता सकूँ।

तो समझ लो—

जब होली का प्रभाव मन पर पड़ना ही है, तो उसे शुभ्रता में बदलो।

या तो यह करो कि उस दिन विदेश चले जाओ, जहाँ होली मनाई ही नहीं जाती।

तब तो कह सकते हो कि पीछे छूट गया।

अगर विदेश नहीं जा रहे हो, तो यहीं पर होली मनाओ और सही तरीके से मनाओ।


फूलों की होली मनाओ।

अंडे फेंकने की प्रथा किसने शुरू की?

कोई पोल्ट्री वाला रहा होगा!

अब अगर वह होली पर अंडे फेंकने की प्रथा शुरू कर सकता है,

तो होली पर कोई अच्छी प्रथा तुम भी शुरू कर सकते हो, नहीं?

कोशिश करो।

हो सकता है कि तुम्हारी प्रथा को पाँच साल बाद लोग मानें।

लेकिन अगर चीज अच्छी होगी, तो धीरे-धीरे फैल जाएगी।

और अगर फैलती भी नहीं, तो भी तुम्हें तो यह सुकून रहेगा कि तुमने कुछ अच्छा किया!
---

अब होली के पीछे की भावना को समझो।

और उसी के अनुसार मनाओ।

देखो, होली कितने प्रतीकों से जुड़ी है!

हिरण्यकश्यप का अहंकार।

उसने पूरे राज्य में निषेधाज्ञा लगा दी—

"यहाँ कोई विष्णु का नाम नहीं लेगा!"

अब सोचो, उसे ताकत किससे मिली?

विष्णु से।

और उसने ताकत का इस्तेमाल किसके खिलाफ किया?

विष्णु के ही खिलाफ!

अब यह इतना जबरदस्त प्रतीक है,

जिसे केंद्र में रखकर होली पर कोई नई अच्छी प्रथा नहीं बना सकते?

क्यों नहीं बना सकते?

आओ, होली के दिन एक जगह बैठकर सोचें।

"इस प्रतीक को ध्यान में रखकर कोई नई प्रथा निकालते हैं, जिससे त्यौहार की भावना बनी रहे और बर्बादी ना हो!"
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अब देखो, हिरण्यकश्यप क्या कर रहा था?

"हमारे पास ताकत है, हम लड़कर दिखाएंगे!"

और लड़ किससे रहा था?

उसी से, जिसने उसे ताकत दी थी!

अब सोचो, तुमने अपनी शक्ति का इस्तेमाल किसके खिलाफ कर लिया?

जिससे तुमने ज्ञान पाया, जिससे शक्ति पाई, उसी के खिलाफ!

जो ऐसा करे, उसका नाम हिरण्यकश्यप है।

और ऐसा करने की प्रवृत्ति आज भी बहुत है।

सावधान रहो!
---

अब देखो,

बड़ी हार मिली।

अब पूरा राज्य तो मान गया था, डर के मारे।

लेकिन एक छोटा सा बच्चा नहीं माना।

"मैं नहीं मानता!"

अब उसकी हार देखो।

पूरा राज्य उसने डरा दिया था।

लेकिन उसका अपना बेटा उसे नहीं मान रहा था।

यही होली है।

अहंकार की हार, सत्य की जीत।

बाप का अर्थ यहाँ पर प्रकृति से है। प्रकृति के आगे सर नहीं झुकाना है। सर तो सच के आगे ही झुकेगा।

और यह कहानी एक खौफनाक सच्चाई को उजागर करती है कि जब तुम सच के साथ चलने लगते हो, तो तुम्हारे नाते-रिश्तेदार या करीबी लोग ही तुम्हारे सबसे बड़े दुश्मन बन जाते हैं। प्रहलाद के साथ भी ऐसा ही हुआ। उसे मारने के लिए दूर के लोग नहीं आए, बल्कि उसकी अपनी बुआ और उसका अपना बाप ही उसे मारने में लग गए।

इस कहानी में बताया गया है कि प्रहलाद इसलिए बच गया क्योंकि उसके पास एक छोटी-सी राख रखी हुई थी, जिससे उसे डर नहीं लग रहा था। उसकी बुआ जल गई। कुछ ऐसा था।

तो होली का संबंध शराब से कैसे जुड़ गया? तुम्हारी मुर्गे से दुश्मनी क्या है? बताओ। कोई भी त्यौहार आए, उसे विकृत कर ही देना है, नहीं?

अभी महाशिवरात्रि भी थी, तो उसमें भांग, गांजा और यह सब कुछ जोड़ दिया गया—"बम-बम भोले" के साथ! शर्म नहीं आती?

मैं तो भोले का भूत हूँ। जब मैं त्यौहार मनाऊँगा, तो बहुत सोच-समझकर, बहुत तरीके से मनाऊँगा।

हर त्यौहार आपको कुछ याद दिलाने के लिए आता है। यह एक अनुभव है, एक रिमाइंडर। साधारण चीजें जो आप रोज़मर्रा की ज़िंदगी में भूल जाते हैं, उन पर से धूल हटाने के लिए त्यौहार आते हैं। साल में दो, पाँच, दस बार, त्यौहार जीवन के मूलभूत सिद्धांतों को आपको फिर से याद दिलाने के लिए आते हैं।

इसलिए त्यौहार को चेतना के विशेष अनुशासन के साथ मनाना होगा, न कि उस दिन और ज़्यादा अपने आप को छूट देकर बेवकूफियों और बदतमीजियों में पड़ जाना है।

आम तौर पर जितने जानवर नहीं कटते, त्यौहार के दिन कट जाते हैं। यह कौन-सा त्यौहार है? चाहे होली हो, चाहे बकरीद हो, चाहे क्रिसमस हो।

मैं पूछना चाहता हूँ, ये कौन-से त्यौहार हैं, जो निर्दोष जानवरों के खून के बिना मनाए नहीं जा सकते?

और होली पर तो कभी परंपरा भी नहीं थी यह सब करने की।

प्रभाव यह पड़ा है कि अब होली और दिवाली पर भी मांस खाना प्रचलित होता जा रहा है। यह हमें कौन सिखा रहा है?

अपने बचपन में मैंने यह सब नहीं देखा था। यह सब पिछले 10-20 सालों में भारत की चेतना पर चढ़ा है—"दारू पियो, मांस खाओ। दारू पियो, मांस खाओ।"

अब तो अपने धर्म पर भी इस मानसिकता को थोप दिया गया है।

कुछ वर्षों से देख रहा हूँ कि इस दिन लोग एक-दूसरे को रंग लगाते हैं। जवान लोग मोटरसाइकिल पर सवार होकर निकलते हैं और एक-दूसरे पर अंडे, कीचड़ आदि फेंकते हैं।

मुझे यह सब बड़ा झूठा और बेकार लगता है।

मैंने निर्णय लिया है कि इस बार एकांत में अपने साथ समय बिताऊँगा।

होली को बिताने का सम्यक तरीका क्या है?

इस दिन, आचार्य जी, कृपया बताइए कि होली को बिताने का सही तरीका क्या है, ताकि मैं अपने साथियों को भी बता सकूँ।

मुझे बैठे रहना है, ही नहीं पाएगा तुमसे!

तो जब होली का प्रभाव मन पर पड़ना ही है, तो उसे शुभ्रता की ओर जाने दो।

या तो यह करो कि उस दिन विदेश निकल जाओ, जहाँ होली मनाई ही नहीं जाती। तब तो यह कह सकते हो कि "पीछे छूट गया"।

लेकिन अगर विदेश नहीं जा रहे हो, तो यहीं पर होली मनाओ और अच्छे से, ऊँचे से ऊँचे तरीके से मनाओ।

फूलों की होली मनाओ।

अंडे फेंकने की प्रथा भी किसी हुनरमंद ने कभी शुरू की होगी—पोल्ट्री वाला रहा होगा, कुछ बात होगी।

तो जब कोई ऐसा हो सकता है, जो होली पर अंडे फेंकने की प्रथा शुरू कर सकता है, तो होली पर कोई अच्छी प्रथा तुम भी शुरू कर सकते हो, नहीं?

हो सकता है कि तुम्हारी प्रथा को अभी पाँचवें साल लोग मानें, लेकिन अगर चीज़ अच्छी होगी, तो उसका विस्तार होगा।

और अगर विस्तार नहीं भी होता, तो भी तुम्हें यह सुकून तो रहेगा कि तुमने कुछ अच्छा किया।

तो होली के पीछे जो भावना है, उसे समझो और उसके अनुसार होली मनाओ।

कितने प्रतीक जुड़े हुए हैं ना होली से?

हिरण्यकश्यप का अहंकार—जिसने अपने पूरे राज्य में निषेधाज्ञा निकाल दी कि "यहाँ कोई विष्णु का नाम नहीं लेगा"।

लेकिन उसे ताकत मिली किससे? विष्णु से ही मिली।

और उसने ताकत का इस्तेमाल किसके खिलाफ किया?

विष्णु के ही खिलाफ किया!

अब यह इतना जबरदस्त प्रतीक है—क्या इसे ध्यान में रखकर होली पर कोई नई प्रथा नहीं बना सकते?

चलो, इस प्रतीक को ध्यान में रखकर कोई नई प्रथा निकालते हैं, जिससे सब कुछ बना रहे—कम से कम उसके खिलाफ तो न जाए।

और हम कहते हैं—हमारे पास ताकत है, हम लड़कर दिखाएँगे।

लेकिन लड़ किससे रहे हो?

तुम उसी से लड़ रहे हो, जिसने तुम्हें ताकत दी!

तुमने अपने ज्ञान का, अपनी शक्ति का इस्तेमाल किसके खिलाफ कर लिया?

जिससे तुमने ज्ञान पाया, जिससे तुमने शक्ति पाई।

जो ऐसा करे, उसका नाम ही हिरण्यकश्यप है।

और ऐसा करने की हमारी प्रवृत्ति बहुत होती है।

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