मतलबी रिश्ते नाते

इंसान सिर्फ एक ही बात से अकेला पड़ जाता है, जब उसके अपने ही उसे गलत समझने लगते हैं। अजनबियों की तरह एक-दूसरे के साथ होते हैं, काम करते हैं, लेकिन एक-दूसरे की परवाह नहीं करते। मतलब ये रिश्ता ऐसे लोगों का समूह है, जिनके बहुत करीबी रिश्ते हैं, लेकिन दूसरों की भावनाओं की care नहीं करते। वे मिलनसार हो सकते हैं, लेकिन वे वास्तव में किसी और की भावनाओं के बारे में नहीं सोचते।

जिंदगी की दौड़ में कभी धूप, कभी छाँव में बेगानों के साथ-साथ अपनों को भी बेगाना बनते देखा। बेफिक्र जिंदगी की एक छोटी-सी कहानी है, जो अपना होकर भी अपनापन ना दिखाए, वह अपना नहीं। मैंने Free कर दिया हर वो रिश्ता, हर वो इंसान, जो सिर्फ अपने मतलब के लिए मेरे साथ था।

यह दुनिया दिखावे की बनी हुई है। यहाँ अपने तो असली में हैं, पर अपनापन दिखावे का है। "डियर" मतलब एक तू ही है, जिसने सब रिश्तों को जोड़े रखा है। रिश्तों की सिलाई अगर भावनाओं से होती है, तो टूटना मुश्किल है, और अगर स्वार्थ से हुई तो टिकना मुश्किल है। जिस दिन तुम्हारा सबसे करीबी Relationship तुम पर गुस्सा करना छोड़ दे, तब समझ लेना कि तुम उस इंसान को खो चुके हो।

मतलबी रिश्तों की बस इतनी-सी कहानी है—अच्छे वक़्त में मेरी खूबियाँ और बुरे वक़्त में मेरी कमियाँ गिनी गईं। रिश्ते अगर सच में जुड़े हैं, तो उन्हें टूटने से फरिश्ते भी नहीं बचा सकते। रिश्ते भी व्यापार की तरह हो गए हैं—प्यार कम, मतलब ज़्यादा। अकेले चलना सीख लो, ज़रूरी नहीं कि जो आज तुम्हारे साथ हैं, वे कल भी तुम्हारे साथ रहें।

वक़्त और अपने जब दोनों एक साथ चोट पहुँचाएँ, तो इंसान बाहर से ही नहीं, अंदर से भी टूट जाता है। जहाँ तक रिश्तों का सवाल है, लोगों का आधा वक़्त अनजान लोगों को इग्नोर करने और अपनों को इम्प्रेस करने में चला जाता है। पहुँच गए हैं कई राज मेरे ग़ैरों के पास, कर लिया था मशवरा एक रोज़ अपनों के साथ। सुना है, तारीफ़ों के पुल के नीचे मतलब की नदी बहती है।

"यह अपने लोग आखिर अपने क्यों नहीं होते?"

कुछ रिश्ते हैं, इसलिए चुप हूँ। कुछ चुप हूँ, इसलिए रिश्ते हैं। वरना दिल मेरे पास भी है और दर्द मुझे भी होता है। खर्च कर दिया खुद को कुछ मतलबी लोगों पर, जो हमेशा साथ थे सिर्फ मतलब के लिए।

रिश्ते निभाने के लिए झुकना और "सॉरी" बोलना सीख लो, क्योंकि अकेली ईगो तुम्हारे रिश्ते नहीं बचाएगी। अगर झुकना पड़े, तो झुक जाओ, लेकिन अगर हर बार तुम्हें ही झुकना पड़े, तो रुक जाओ। संबंध कभी भी सबसे जीतकर नहीं निभाए जा सकते। संबंधों की खुशहाली के लिए झुकना होता है, सहना होता है, दूसरों को जिताना होता है और स्वयं हारना होता है।

कुछ बोलने से पहले बहुत कुछ सोचना पड़ता है, क्योंकि दुनिया अब दिल से नहीं, दिमाग से रिश्ते निभाती है। किसी ने पूछा—"सब कुछ जानकर भी चुप क्यों रहते हो?" मैंने जवाब दिया—"कोई अपने मतलब के लिए कितना गिर सकता है, यह देखना अच्छा लगता है।"

बदलती हुई चीज़ें हमेशा अच्छी लगती हैं, पर बदलते हुए अपने कभी अच्छे नहीं लगते। औकात मेरी छोटी थी, लेकिन सपने बहुत बड़े थे। नज़र घुमा के देखा, मेरे अपने ही दुश्मन बनकर खड़े थे। तेरा इश्क ही तो था, जिस पर मुझे सबसे ज़्यादा यकीन था, पर अफ़सोस, वह भी मतलब ही निकला। मासूमियत की हद तब पार हुई, जब मासूमियत के पर्दे उठने पर चालाकी का चेहरा दिखा।

जो खुद को चालाक समझते हैं, वे अक्सर चालाक होते नहीं, बस उन्हें भ्रम होता है कि वे चालाक हैं। आखिर इतने चालाक कैसे हो जाते हैं लोग? कभी इसके, कभी उसके कैसे हो जाते हैं लोग?

अब मुझे तकलीफ नहीं होती, चाहे कोई भी छोड़कर जाए, क्योंकि मैंने उन रिश्तों से धोखा खाया है, जिन पर मुझे खुद से ज़्यादा नाज़ था। तेरे इस मतलबी इश्क़ ने मुझे इतना तो सिखा ही दिया कि प्यार करके भी अपने मतलब पूरे किए जा सकते हैं। जिन रिश्तों में ज़हर घुल चुका हो, वे रिश्ते अमृत मिला देने से भी मीठे नहीं हो सकते।

जो प्यार केवल मतलब के लिए किया जाए, वह प्यार हमेशा दूसरों के दिलों को ठेस ही पहुँचाता है। जिंदगी में एक ही नियम रखो—सीधा बोलो, सच बोलो और मुँह पर बोलो। जो अपने होंगे, वे समझ जाएंगे, और जो नाम के होंगे, वे दूर हो जाएंगे।

उन्हें अपना समझने से क्या फायदा, जिनके अंदर आपके लिए कोई अपनापन ही ना हो? भुला देंगे तुम्हें भी, ज़रा सब्र तो कीजिए। आपकी तरह मतलबी होने में जरा वक्त लगेगा। आज वे लोग भी मतलबी हो गए हैं, जो कहते थे कि मुझे तुम्हारी आदत हो गई है!

इतिहास गवाह है—खबर हो, कब्र हो, या खुदाई—खोदते अपने ही हैं। इस स्वार्थी दुनिया में किसी से क्या आस लगाना? जब कोई किसी का नहीं होता, तो क्यों किसी के आने की आस लगाना?

किस-किस को स्वार्थी कहोगे जनाब? यहाँ तो पूरी दुनिया ही स्वार्थी है। इस तरह से हर जगह अपने मतलब की ना सौदा करो साहब। एक वक्त ऐसा भी ज़रूर आएगा, जब कोई आपके बारे में नहीं सोचेगा।

इस दुनिया में मेरी सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि मैं हर किसी को अपना समझ लेता हूँ। देखो, ठंड बढ़ रही है, इसलिए जिंदगी में आग लगाने वाले रिश्ते और पड़ोसी ही काम आएंगे। यह जिंदगी है साहब, यहाँ धोखा तो साथ चलने वाले ही देते हैं।

कुछ लोग स्लीपर चप्पल जैसे होते हैं—साथ देते हैं, पर पीछे से कीचड़ उछालते रहते हैं। जिन लोगों को आपसे दूर होना होता है, वे कोई न कोई बहाना बना ही लेते हैं और सारा दोष परिस्थितियों पर डाल देते हैं।

अपनी तारीफ खुद ही कर लिया करो, बुराई करने के लिए तो रिश्तेदार बैठे हैं! तिरस्कार यदि बार-बार अपनों से ही मिले, तो शब्दों का विवाद उचित नहीं, क्योंकि जो व्यक्ति आपके महत्व को ही नहीं समझ सका, वह आपके शब्दों और भावनाओं को क्या समझेगा?

धोखा यह नहीं कि जो मिले वे पत्थर के लोग थे, अफ़सोस यह है कि उनमें से चंद मेरे घर के लोग थे। जहरीले सांप तो बहुत होंगे, पर सबसे बड़ा ज़हरीला सांप वह होता है, जिसका नाम "रिश्तेदार" होता है—जो हर मोड़ पर फन फैलाए बैठा रहता है।

हर बार अपनी बातों पर सफाई देनी पड़ जाए, तो वे रिश्ते कभी गहरे नहीं होते। बचपन में कभी सोचा नहीं था, जिन रिश्तेदारों के लिए हम दौड़-दौड़ के काम करते थे, बड़े होने के बाद वही रिश्तेदार हमारी लेने भी दौड़-दौड़ के ही आएंगे।

अपनों का प्यार तो बहुत दूर की बात है, अपनों का साथ मिल जाए, उतना ही बहुत है। अजीब दुनिया है साहब, यहाँ कद्र उसकी होती है, जो सिर्फ दिखावा करता है।

"रिश्ते खास नहीं होते, आधे से ज़्यादा रिश्ते आस्तीन के साँप होते हैं!"

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