ब्रह्म: चुनाव की कला और सत्य की खोज
ब्रह्म और जीवन के सही चुनाव
ऋषियों का संदेश: मन की शांति
उपनिषदों का मूल उद्देश्य केवल ज्ञान देना नहीं, बल्कि मन की बेचैनी को शांत करना है। ऋषियों ने जो कुछ भी कहा, वह सत्य के अनुभव से उपजा था। सत्य को केवल विचारों में नहीं, बल्कि अनुभूति में देखा जाना चाहिए।
ब्रह्म के अलावा कोई और सत्य नहीं है, और उसे शब्दों में पूरी तरह व्यक्त नहीं किया जा सकता। मन के स्तर पर जो भी कहा गया, वह केवल मार्गदर्शन के लिए है। सत्य को केवल तर्क से नहीं, बल्कि उसकी उपयोगिता और अनुभूति से समझा जाना चाहिए।
ब्रह्म – श्रेष्ठता से परे
"ब्रह्म श्रेष्ठ है" यह वाक्य भी पूर्ण नहीं है, क्योंकि ब्रह्म के अतिरिक्त दूसरा कुछ है ही नहीं। जब दूसरा कुछ है ही नहीं, तो श्रेष्ठ और हीन की कोई तुलना नहीं हो सकती। यह बात मन की सीमाओं को ध्यान में रखकर कही गई है, क्योंकि मन ही भेदभाव करता है—किसी को श्रेष्ठ मानता है, किसी को तुच्छ।
लेकिन जब सब कुछ ब्रह्म में ही समाहित है, तो तुलना का कोई आधार नहीं बचता। इसलिए, यह वाक्य "मेरे लिए ब्रह्म से श्रेष्ठ कोई नहीं" इस अर्थ में कहा गया है कि जब भी कोई चुनाव करना हो, तो ब्रह्म को ही प्राथमिकता दो।
चुनाव की प्रक्रिया और जीवन
मनुष्य का जीवन चुनावों की एक श्रृंखला है। हर क्षण हमें तय करना पड़ता है कि क्या उचित है और क्या अनुचित, क्या ऊँचा है और क्या नीचा। संसार में कोई भी पूरी तरह निष्पक्ष नहीं हो सकता, क्योंकि हमारी चेतना सीमित है।
हमारे सामने हमेशा विकल्प होते हैं—
कौन सा विचार अपनाएं?
कौन सा कार्य करें?
किस व्यक्ति का अनुसरण करें?
यही चुनाव हमारी दिशा तय करते हैं। सही चुनाव मुक्ति की ओर ले जाता है, और गलत चुनाव बंधन की ओर। ऋषियों ने हमें यही सिखाया कि जब भी कोई निर्णय लो, तो उसे ब्रह्म के आधार पर देखो।
ब्रह्म का चुनाव कैसे करें?
अब प्रश्न उठता है कि जब ब्रह्म कोई भौतिक वस्तु नहीं है, तो उसे कैसे चुना जाए?
इसका उत्तर यह है कि जो कुछ भी ब्रह्म के लक्षणों के विपरीत है, उसे नकार दो। ब्रह्म के कोई गुण, नाम, रूप, जाति, रंग नहीं होते। फिर भी उसे विभिन्न उपाधियों से निरूपित किया गया है ताकि हम उसे समझ सकें।
अगर हमारे सामने दो विकल्प हों—
1. एक ऐसा जो हमें किसी व्यक्ति, वस्तु या विचार से बाँधता है।
2. दूसरा ऐसा जो हमें स्वतंत्र करता है।
तो हमें दूसरे को चुनना चाहिए, क्योंकि ब्रह्म निर्बंध है, निरालंब है।
ब्रह्म निर्गुण है, प्रकृति से परे है
जो कुछ भी हमें आकर्षित करता है, उसमें प्रकृति का कोई गुण होता है। लेकिन ब्रह्म निर्गुण है। इसलिए हमें सावधान रहना चाहिए कि हमारा चुनाव केवल हमारे पुराने संस्कारों, इच्छाओं या मानसिक धारणाओं के आधार पर न हो।
यदि कोई विचार, व्यक्ति, या वस्तु हमें अपनी ओर खींच रही है, तो देखना होगा कि उसका आकर्षण केवल हमारी मानसिक वासनाओं का परिणाम तो नहीं है। यदि हाँ, तो वह ब्रह्म का मार्ग नहीं है।
सही चुनाव की कुंजी
अगर जीवन के हर निर्णय में हमें सही मार्ग चुनना है, तो हमें यह देखना होगा कि कौन-सा विकल्प ब्रह्म के निकटतम है। जब भी कोई चुनाव करना हो, तो यह देखो—
क्या यह विकल्प तुम्हें स्वतंत्र बना रहा है या परनिर्भर कर रहा है?
क्या यह विकल्प तुम्हारे बंधनों को तोड़ रहा है या नए बंधन खड़े कर रहा है?
क्या यह विकल्प तुम्हारी चेतना को स्पष्ट कर रहा है या भ्रमित कर रहा है?
यदि हम इन बातों को ध्यान में रखें, तो हम सही चुनाव कर सकते हैं और ब्रह्म के मार्ग पर आगे बढ़ सकते हैं।
निष्कर्ष
ऋषियों का ज्ञान केवल पढ़ने या विचार करने के लिए नहीं है, बल्कि जीवन में लागू करने के लिए है। जब भी कोई निर्णय लो, तो यह मत देखो कि क्या सुखद है, बल्कि यह देखो कि क्या सत्य है। सत्य वही है जो तुम्हें मुक्ति की ओर ले जाए, और वह ब्रह्म ही है।
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