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क्या आप भी काम से ज्यादा विचारों से घिरे रहते हो?

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सुधार की ओर पहला कदम जब आप खुद को सुधारने के लिए तैयार हो जाते हैं , तो आपको तुरंत यह अहसास हो जाता है कि दुनिया भी सुधर सकती है। लेकिन अगर कोई आपसे कहे कि इस दुनिया का कुछ नहीं हो सकता, तो समझ जाइए कि वह असल में यह कह रहा है कि "मेरा कुछ नहीं हो सकता।" अगर कोई व्यक्ति यह कहता है कि "मेरी पत्नी घर छोड़कर चली गई," तो उसका वास्तविक अर्थ यह है कि "मैं खुद को सुधारने को तैयार नहीं हूँ।" जो व्यक्ति खुद को सुधारने की ओर बढ़ता है, वह देख पाता है कि हर कोई बदल सकता है और हर किसी को सुधारने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। एक बार जब आप स्वयं को निर्मलता (शुद्धता) और निर्दोषता के आनंद में डुबो देते हैं, तो आपको यह अनुभव होता है कि यह मिठास सिर्फ आपके लिए नहीं है, बल्कि इसे सबके साथ बाँटना चाहिए। फिर आप यह नहीं सह सकते कि आप तो निर्मल हो गए, लेकिन बाकी सब मलिन (अशुद्ध) रह जाएँ। यही क्षण वह होता है जब आपके भीतर उम्मीद जगती है, और उम्मीद से आगे जाकर श्रद्धा जन्म लेती है। वास्तविकता और विचारों की जटिलता जब आप अपने जीवन का निरीक्षण करते हैं और छोटी-छोटी चीज़ों को...

आलस - पहले यह दुश्मन को हराना जरूरी है

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सफलता का रहस्य: कर्म, पुरुषार्थ और अनुशासन हम सभी अपने जीवन में सफलता पाना चाहते हैं। लेकिन सफलता केवल इच्छा करने से नहीं मिलती—इसके लिए कर्म, अनुशासन और पुरुषार्थ का होना जरूरी है। अक्सर हम सोचते हैं कि " मैं मेहनत कर रहा हूँ , लेकिन परिणाम क्यों नहीं मिल रहा?" इसका उत्तर बहुत सरल है—केवल मेहनत करना ही पर्याप्त नहीं, बल्कि सही दिशा में, सही तरीके से और सही मानसिकता के साथ मेहनत करना आवश्यक है। प्रमुख स्वामी महाराज के जीवन से हम यह सीख सकते हैं कि "कल का काम आज करो, और आज का काम अभी करो!" यही वह मानसिकता है, जो हमें जीवन में आगे बढ़ा सकती है। --- 1. प्रोक्रैस्टिनेशन और आलस्य: सफलता के सबसे बड़े दुश्मन आपने कभी गौर किया है कि जब हमें कोई महत्वपूर्ण काम करना होता है, तो अचानक हमारा मन दूसरी चीजों में लगने लगता है? "पहले थोड़ा आराम कर लूँ, फिर काम करूँगा।" "चलो, पहले सोशल मीडिया चेक कर लेता हूँ।" "अभी मूड नहीं है, कल कर लूँगा।" यह आदत धीरे-धीरे हमारे जीवन को नुकसान पहुँचाती है। हम देखते हैं कि सफल लोग कभी भी टालमटोल नहीं करते। ...

Time Menagement - Time के गुलाम बन जाव

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टाइम मैनेजमेंट और फोकस को बेहतर बनाने का फ़्रेमवर्क हम सभी प्रोडक्टिविटी से जुड़े कई ब्लॉग देखते हैं और लोगों से सीखते हैं कि कैसे प्रोक्रेस्टिनेशन को हराकर ध्यान केंद्रित किया जाए। लेकिन जब इन सभी टिप्स को अपनी जिंदगी में लागू करने की बात आती है, तो यह लगभग नामुमकिन सा लगता है। इस समस्या को हल करने के लिए गूगल के डिज़ाइनर जैक फिस्के , जिन्होंने जीमेल और यूट्यूब जैसे प्रोडक्ट्स डिज़ाइन किए हैं, ने अपने अनुभवों से एक प्रभावी फ़्रेमवर्क तैयार किया है। इस फ्रेमवर्क को जैक फिस्के और जॉन ज़ेरेत्स्की ने अपनी किताब "Make Time: How to Focus on What Matters Every Day" में विस्तार से बताया है। इस वीडियो में हम आपके साथ वही फ्रेमवर्क शेयर करने जा रहे हैं। 1. हमारा समय कैसे खर्च होता है? टाइम मैनेज करने से पहले यह समझना जरूरी है कि हमारा समय कहां जा रहा है। आमतौर पर, हमारा दिन दो मुख्य कारणों से व्यस्त रहता है: Busy Bandwagon (व्यस्तता की आदत) – हम अपनी व्यस्तता को एक गर्व की बात मानते हैं और सोचते हैं कि हर मिनट कुछ प्रोडक्टिव करना जरूरी है। Infinity Pools (अनंत व्याकुलता क...

क्या आपको भी काम टालने की आदत है

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कभी-कभी हमें लगता है कि आज काम करने का मन नहीं है—बस आज नहीं पढ़ना। फिर कुछ घंटों बाद अफसोस होता है कि एक और दिन बेकार चला गया। अगर आप सोचते हैं कि यह समस्या केवल जवानी तक सीमित है, तो आप गलत हैं। 43 रिसर्च स्टडीज के एक मेटा-एनालिसिस में पाया गया कि प्राइवेट ऑफिस में काम करने वाले लोग भी 30 से 60% जरूरी काम टालते हैं और लगातार ध्यान केंद्रित नहीं रख पाते। यानी, प्रोफेशनल और जिम्मेदार लोग भी इस समस्या से जूझते हैं, जिनकी सैलरी और बोनस सीधे उनकी परफॉर्मेंस पर निर्भर करता है। कंसिस्टेंसी का पहला नियम: यह अदृश्य होती है, इसलिए कठिन होती है। जाने-माने ट्रेडर और गणितज्ञ नसीम निकोलस तालिब अपनी किताब Fooled by Randomness में कहते हैं कि जीवन में प्रगति की रेखा सीधी नहीं होती। शुरुआत में कोई भी परिणाम नहीं दिखता, फिर अचानक एक दिन बदलाव नजर आने लगता है। तालिब बताते हैं कि जब उन्होंने कॉलेज में गणित और सांख्यिकी पढ़ी, तो शुरुआत में वे बाजार की चाल नहीं समझ पा रहे थे। लेकिन एक साल तक लगातार अध्ययन के बाद, उन्होंने अचानक सही निर्णय लेने शुरू कर दिए। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उनका दिमाग अन...

दोस्त यह दुनिया मतलबी है

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गिरना भी अच्छा है, औक़ात पता चलती है, और बुरे समय में साथ चलने वाले कितने हैं, यह भी पता चलता है। हौसला मत हार गिर कर, ऐ मुसाफ़िर! अगर यहाँ दर्द मिला है तो दवा भी ज़रूर मिलेगी। किसी ने मुझसे पूछा कि पूरी ज़िंदगी क्या किया? मैंने हँसकर जवाब दिया—"किसी के साथ धोखा नहीं किया।" ज़िंदगी का यह उसूल बना लो: जो आपको छोड़ दे, उसे भुला दो। उम्र को हराना है तो शौक ज़िंदा रखो। घुटने चले या न चलें, लेकिन एक उड़ता परिंदा ज़रूर रखो। किसी को गीता में ज्ञान मिला, किसी को क़ुरान में, मगर इंसान को इंसान में इंसान नहीं मिला। जब भी तुम्हारा हौसला आफ़त में होगा, याद रखना—कोई न कोई तुम्हारे पंख काटने ज़रूर आएगा। भले ही जीवनभर अकेले रह लेना, लेकिन जबरदस्ती किसी से रिश्ता निभाने की ज़िद मत करना। किसी को टूटकर चाहो मगर उसे अपनी आदत मत बनाना, क्योंकि आदतें बदलने में इंसान अक्सर टूट जाता है। पाँच चीज़ें अभी से छोड़ दो: 1. सबको ख़ुश करने की कोशिश 2. दूसरों से ज़्यादा उम्मीदें 3. ज़िंदगी को टुकड़ों में जीना 4. खुद को किसी और से कम समझना 5. बहुत ज़्यादा सोचना एक बात हमेशा याद रखो: किसी के सामने...

समृद्ध और सफल जीवन के लिए मार्गदर्शन"

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आचार्य चाणक्य के अनमोल विचार दोस्तों! आचार्य चाणक्य एक महान विद्वान और आचार्य थे। वे कौटिल्य और विष्णु गुप्त के नाम से भी जाने जाते थे। उनकी बुद्धिमानी और समझदारी की आज भी चर्चा होती है और लोग उन्हें मिसाल के रूप में देखते हैं। इस ब्लॉग के माध्यम से आप आचार्य चाणक्य के अनमोल विचारों को जानेंगे, इसलिए वीडियो को अंत तक देखें। व्यक्ति और चरित्र 20 वर्ष की आयु में व्यक्ति का जो चेहरा होता है, वह प्रकृति की देन होता है। 30 वर्ष की आयु में व्यक्ति का चेहरा जीवन के उतार-चढ़ाव की देन होता है। 50 वर्ष की आयु में व्यक्ति का चेहरा उसकी अपनी कमाई होता है। ईश्वर को कुछ चीजें विशेष रूप से प्रिय होती हैं: प्रेम से भरी हुई आँखें श्रद्धा से झुका हुआ सिर सहयोग करने वाले हाथ सतमार्ग पर चलते पैर सत्य से जुड़ी हुई जीभ सौंदर्य और गुण शारीरिक सुंदरता केवल एक रात की खुशी दे सकती है, लेकिन दिल की सुंदरता जीवनभर सुख देती है। इसलिए दिल से सुंदर महिला के साथ विवाह करना ज्यादा अच्छा है। जन्म से आए गुणों को बदला नहीं जा सकता। जैसे, नीम के पेड़ पर दूध चढ़ाने से वह मीठा नहीं बनता। दूध में पानी मिलाने से ...

यह हमारी जड़ता और हमारे अहंकार का प्रमाण है

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ओशो ने दुनिया भर के विषयों पर बोला, तुम्हें उनकी बातों में सिर्फ सेक्स को ही चुनने में क्यों रुचि है? अष्टावक्र संहिता पर ओशो ने इतना मोटा साहित्य खड़ा कर दिया है, गीता पर वांग में है और पतंजलि योग सूत्र पर भी है। दुनिया का कोई उत्कृष्ट ग्रंथ होगा जिस पर ओशो ने नहीं बोला हो? बल्कि ऐसे-ऐसे ग्रंथों पर बोले हैं, जिन पर ओशो से पहले किसी ने नहीं बोला। विज्ञान भैरव तंत्र भी अनजाने से ही थे, ओशो ने उन्हें प्रसिद्ध कर दिया, पूरी दुनिया में ले गए, लोग जानने लग गए। तुम्हें वह सब क्यों नहीं पता? मीरा बाई पर भी बोले हैं, उसकी तस्वीर क्यों नहीं डालते तुम फेसबुक पर? सहजोबाई पर बोले हैं, दादू दयाल पर बोले हैं, वह सब क्यों नहीं डालते तुम फेसबुक पर? क्यों नहीं डालते तुम? यही क्यों डालते हो? क्योंकि तुम घटिया आदमी हो। तुम ओशो का नाम लेकर अपनी पुरानी घटिया वासनाएं पूरी कर रहे हो। बल्कि तुमने अपनी वासनाओं को सम्मान देने के लिए एक नाम ढूंढ लिया है—ओशो। भाई, कोई व्यक्ति जब जीवन के हर पहलू पर बोलता है, तो सेक्स पर भी बोलेगा ना? क्योंकि उसे जीवन की समग्रता को संबोधित करना है। जब वह जन्म पर बो...

आध्यात्मिकता और संन्यास: क्या समाज को त्यागना आवश्यक है?

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क्या आध्यात्मिकता की और बढ़ ना संन्यास बराबर होता है?  मेरा प्रश्न यही है—समाज में यह धारणा क्यों बनी हुई है कि जो आध्यात्मिक हो जाएगा, वह एक दिन संन्यासी बन जाएगा या समाज को छोड़ देगा? धर्म तो समाज का केंद्र होना चाहिए, समाज का धन होना चाहिए। धार्मिक व्यक्ति जैसा ऊर्जावान जीवन तो किसी और का हो ही नहीं सकता। लेकिन अगर समाज ने यह देखा है कि जो लोग धर्म की ओर बढ़ते हैं, वे निष्क्रिय हो जाते हैं, तो फिर इस छवि को कैसे बदला जाए? समाज का यह अनुभव रहा है कि अध्यात्म के नाम पर लोग कहीं जाकर बैठ जाते हैं और कहते हैं—"बस हो गया, जय सियाराम! अब करना ही क्या है? यह जगत तो माया है, मिथ्या है।" जब यह धारणा बन गई है, तो अब इसे बदलने के लिए कुछ लोगों को आगे आना होगा। जो दिखाएँ कि आध्यात्मिक व्यक्ति से अधिक गतिशील जीवन किसी और का नहीं हो सकता। जब यह प्रमाणित होगा, तो धीरे-धीरे समाज की धारणा भी बदलेगी। आप ऋषिकेश की बात करते हैं—यहाँ इतने साधु-संत हैं, लेकिन लोगों को यही छवि दिखती है कि कोई जा रहा होगा, बैठ जाएगा और चिलम फूँकने लगेगा! एक व्यक्ति यहाँ तैयारियों के दौरान आया था, जब ...

ऐसे होगा दुखो का अंत?

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दुःख और उसका उपचार दुःख की हर स्थिति में दो पक्ष होते हैं—एक दुःख देने वाला और दूसरा दुःख सहने वाला। ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं; एक के बिना दूसरा संभव नहीं। दुःख, पीड़ा, कष्ट की हर परिस्थिति में इन दोनों को आप मौजूद पाएंगे—वे स्थितियाँ, जिनमें दुःख का अनुभव होता है, और वह इकाई, जो दुःख का अनुभव करती है। ये लगातार बने रहेंगे। इसलिए, जब भी आपको उपचार करना होगा, तो इन्हीं दो में से किसी एक का करना होगा। किसी एक का उपचार कर लो, दूसरा अपने आप हो जाता है, क्योंकि ये दोनों एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। अध्यात्म कहता है—शुरुआत भीतर से करो, उस इकाई से, जो दुःख सहने के लिए आतुर रहती है। क्योंकि बाहरी स्थितियाँ हर समय हमारे हाथ में नहीं होतीं। दूसरी बात, अगर भीतर ही वह जमा बैठा है जो दुःख सहने को तैयार है, तो तुम बाहर की परिस्थितियाँ बदल भी दोगे, तब भी वह दुःख पाने का कोई और तरीका ढूंढ लेगा। इसलिए, यदि उपचार करना ही है, तो प्राथमिकता भीतर वाले को दो। बाहर की परिस्थितियों का परिवर्तन भी अवश्यंभावी है। क्योंकि जब भीतर का बदलाव शुरू होगा, तो तुम बाहर को भी अधिक दिनों तक पकड़े नहीं...

अपने झूठ को छोड़कर जीवन को बदलने की विधि

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सद्गुरु आज हमें एक विधि दे रहे हैं। वे कह रहे हैं—"वह जो भीतर झूठ बैठा हुआ है, उसको अगर हटाना है तो उन सब विषयों को जीवन से हटा दो, जिनको उस झूठ ने पकड़ा हुआ है, जिन पर वह झूठ सहारा लेकर, आश्रय लेकर खड़ा हुआ है।" सद्गुरु कह रहे हैं—"जो कुछ भी तुम्हारे मन में है, जब तक वह रहेगा, तब तक तुम भी वही रहोगे जो तुम हो। जो कुछ तुम्हारे मन में है, माने विषय, जब तक तुम्हारे मन के विषय वही हैं जो आज हैं, तब तक तुम भी वही रहोगे जो आज हो। जब तक मन की सामग्री नहीं जाएगी, तब तक तुम भी नहीं जाओगे।" चलो, जाना थोड़ा खौफ की बात लग जाती है। हमें नहीं जाना! अभी सद्गुरु जब देखो तब विदाई ही लगाते रहते हैं। आते हैं और खट से बोलते हैं—"जाओ!" हमें जाना होता, तो आए काहे को होते? अब आए हैं तो... अच्छा, ठीक है। मत बोलो कि "तुम तभी जाओगे जब मन की सामग्री जाएगी।" ऐसे लिख लो—"जब तक मन की सामग्री नहीं बदलेगी, तब तक तुम भी नहीं बदलोगे।" बदलना तो ठीक है ना? जाने को नहीं कह रहे, बुरा मत मानो। तो तुम कौन हो फिर? तुम तुम्हारे मन की सामग्री हो। जो स्वयं को बदलन...

ब्रह्म: चुनाव की कला और सत्य की खोज

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ब्रह्म और जीवन के सही चुनाव ऋषियों का संदेश: मन की शांति उपनिषदों का मूल उद्देश्य केवल ज्ञान देना नहीं, बल्कि मन की बेचैनी को शांत करना है। ऋषियों ने जो कुछ भी कहा, वह सत्य के अनुभव से उपजा था। सत्य को केवल विचारों में नहीं, बल्कि अनुभूति में देखा जाना चाहिए। ब्रह्म के अलावा कोई और सत्य नहीं है, और उसे शब्दों में पूरी तरह व्यक्त नहीं किया जा सकता। मन के स्तर पर जो भी कहा गया, वह केवल मार्गदर्शन के लिए है। सत्य को केवल तर्क से नहीं, बल्कि उसकी उपयोगिता और अनुभूति से समझा जाना चाहिए। ब्रह्म – श्रेष्ठता से परे "ब्रह्म श्रेष्ठ है" यह वाक्य भी पूर्ण नहीं है, क्योंकि ब्रह्म के अतिरिक्त दूसरा कुछ है ही नहीं। जब दूसरा कुछ है ही नहीं, तो श्रेष्ठ और हीन की कोई तुलना नहीं हो सकती। यह बात मन की सीमाओं को ध्यान में रखकर कही गई है, क्योंकि मन ही भेदभाव करता है—किसी को श्रेष्ठ मानता है, किसी को तुच्छ। लेकिन जब सब कुछ ब्रह्म में ही समाहित है, तो तुलना का कोई आधार नहीं बचता। इसलिए, यह वाक्य "मेरे लिए ब्रह्म से श्रेष्ठ कोई नहीं" इस अर्थ में कहा गया है कि जब भी कोई चुनाव क...

जब-जब धर्म की हानि होगी, तब-तब मैं आऊंगा" – गीता का गूढ़ संदेश

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" जब-जब धर्म की हानि होगी, तब-तब मैं आऊंगा " – गीता का गूढ़ संदेश भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा: " परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ।।" अर्थात, जब-जब धर्म की हानि होगी और अधर्म बढ़ेगा, तब-तब मैं धर्म की स्थापना के लिए अवतरित होऊँगा। लेकिन यह कथन केवल बाहरी रूप से देखने योग्य नहीं है। इसे समझने के लिए हमें गहराई में जाना होगा। यह संवाद केवल युद्धक्षेत्र में अर्जुन और श्रीकृष्ण के बीच का वार्तालाप नहीं है, बल्कि यह मन और आत्मा के बीच का संवाद है। अध्यात्म – व्यक्तियों की नहीं, आत्मा की बात अध्यात्म बाहरी घटनाओं या व्यक्तियों के बारे में नहीं होता। यह आत्मा और मन की यात्रा से जुड़ा होता है। संसार में होने वाली घटनाएँ, लोगों की कथाएँ या नाटक अध्यात्म का विषय नहीं हैं। जब कृष्ण कहते हैं "जब-जब धर्म की हानि होगी, तब-तब मैं आऊंगा," तो इसका अर्थ यह नहीं है कि कोई अवतार आकर समस्या हल करेगा। इसका गहरा अर्थ यह है कि जब-जब कोई व्यक्ति सत्य (धर्म) से भटकता है और अधर्म (असत्य) की ओर बढ़ता है, तब-...

मन को काबू में कैसे रखें: आत्म-चिंतन और पूर्णता के माध्यम से मार्गदर्शन"

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मन को काबू में कैसे रखें? सबसे पहले यह समझना ज़रूरी है कि जिसे हम "मन" कहते हैं, वह वास्तव में क्या है? मन हमारे विचारों, भावनाओं और प्रतिक्रियाओं का एक प्रवाह है। यह हमारी परिभाषा, धारणाओं और मान्यताओं से संचालित होता है। इसलिए, जब हम यह सवाल पूछते हैं कि "मन को काबू में कैसे रखें?" तो इसका असली अर्थ यह होना चाहिए कि "क्या वास्तव में मन को काबू में रखा जा सकता है?" मन का स्वभाव मन स्वभाव से चंचल है। जैसे हवा को मुट्ठी में बंद नहीं किया जा सकता, वैसे ही मन को जबरदस्ती काबू में नहीं किया जा सकता। लेकिन मन को समझकर, उसकी दिशा को बदलकर, हम उसे नियंत्रित करने की ओर बढ़ सकते हैं। पहचान की समस्या अगर कोई यह कहे कि "मुझे मन को काबू में रखना है," तो सबसे पहला सवाल उठता है कि "यह 'मैं' कौन है जो मन को नियंत्रित करना चाहता है?" क्या मन और 'मैं' अलग-अलग हैं? जिस तरह आइने में दिखने वाली छवि को बदलने के लिए हमें खुद को बदलना पड़ता है, उसी तरह मन की स्थिति को सुधारने के लिए हमें अपने 'स्व' को समझना होगा। मन की स्थि...